Menu
blogid : 14347 postid : 5

भ्रष्टाचार हमारे अंदर है………

Meri udaan mera aasman
Meri udaan mera aasman
  • 40 Posts
  • 760 Comments

फिल्म पूरब और पश्चिम का यह गीत “है प्रीत जहाँ की रीत सदा” सुनकर अपने देश के प्रति सम्मान हमारे दिलो में और ज्यादा बढ़ जाता है ! अधिकतर 15 अगस्त या 26 जनवरी को देशभक्ति से भरे ये गीत रेडियो पर या टीवी पर 2-3 दिन पहले से ही सुनाई देने लगते हैं ! देश भक्ति के जज्बे से भरे हुए इन गीतों को सुनकर निश्चित ही देश के प्रति सम्मान की भावना बढती है , भक्ति की भावना जाग्रत होती है ! लेकिन इनका असर सिर्फ 2 या 3 दिन तक ही रहता है ! 15 अगस्त या 26 जनवरी के बाद न ये गीत सुनाई  देते हैं न ही देशभक्ति की भावना इतनी शिद्दत से हमारे दिलो में बसी रहती है ! “है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ , भारत का रहने वाला हूँ , भारत की बात सुनाता हूँ ” मनोज कुमार पर फिल्माया गया यह गीत भारत की शान को बढाता है! हमे हमारे भारतवासी होने पर गर्व महसूस करवाता है ! इसी गीत की चंद लाइने हैं :-


“जीते हो किसी ने देश तो क्या
हमने तो दिलो को जीता है
जहाँ राम अभी तक है नर में
नारी में अभी तक सीता है”


बहुत अच्छा लगता है अपने देश के बारे में इतनी बड़ी – बड़ी बाते सुनकर, गर्व होने लगता है अपने भारतवासी होने पर लेकिन अगर हकीक़त से नजरे मिलाएं तो वह सच्चाई सामने आती है कि हम खुद से ही नजरे मिलाने के काबिल न रहे !  जहाँ राम अभी तक है नर मे, नारी में अभी तक सीता है” यह गीत जब लिखा गया होगा तो शायद इन शव्दों के अर्थो की सार्थकता को सिद्ध करता होगा लेकिन आज इस गीत की सभी बाते झूठी साबित होती है —- आज राम के देश में नर के अंदर न तो राम जिन्दा है और न ही नारी के अंदर सीता !
राम के अंदर जितना धैर्य था क्या आज के इंसान में उतना धैर्य है ? राम — जिसने रावण से युद्ध करने से पहले उसे कई बार समझाया , उसे कई बार मौका दिया अपनी भूल को सुधारने का ! क्या आज इन्सान के अंदर श्री राम का यह गुण है ? आज लोग छोटी – छोटी बातो पर एक दुसरे की जान लेने के लिए तैयार खड़े होते हैं !


आज भारत देश वीर योद्धाओ का देश कम अपराधियों और भ्रष्टाचारियो का देश ज्यादा लगने लगा है ! हमारे महान भारत देश के जो हालात आज हैं उन्हें देखकर सभी भारतवासियों का सिर शर्म से झुक जाता है ऐसा सिर्फ मैं सोचती हूँ जो सच नही है, अगर ऐसा होता तो देश के हालात आज ऐसे नही होते !
हमारे महान देश में अपराधो का ग्राफ दिन-प्रतिदिन इतनी तेज रफ़्तार से ऊपर जा रहा है जितनी तेज रफ़्तार से हमारी बेचारी भारत सरकार महंगाई के ग्राफ को ऊपर पंहुचा रही है ! ऐसा लगता है मानो अपराधियों और सरकार  में एक – दुसरे आगे निकलने की होड़ लगी हो ! अपराधी एक से बढ़कर एक अपराध करते हैं कि देखो मैं आगे तो सरकार उन्हें नीचा दिखाने के लिए मंगहाई बढ़ा देती है कि मैं आगे ! हमारे महान भारत देश के भोले – भाले नेताओ की हालत तो उन बन्दरो के जैसे हो गयी है जिनको अगर केले दिखाई दे जाये तो वो बिना सोचे समझे एक दुसरे से लड़ने लगते हैं उन केलो को खाने के लिए , ऐसे ही हमारे नेता लोग बेचारे कुर्सी को हथियाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार बैठे है, अपनी इन्सानियत तक को कब्र में दफना चुके है मगर अफ़सोस की कुर्सी फिर भी हाथ नही आ रही। चलो ये भी ठीक ही है अपनी इंसानियत को क़त्ल कर देने से एक फायदा तो नेताओ का हो ही रहा है कुर्सी तो जब मिलेगी तब मिलेगी लेकिन बैंक अकाउंट तो एक्टिव रहते हैं। इंसानियत का क्या करना है जेब में नोट होने चाहिए, नोट हों तो कुर्सी पर बैठे लोग भी आपकी ही जेब में होंगे। अपना घर अच्छा और साफ़ तो समझो कि सारी दुनिया साफ़ सुथरी है, फिर इंसानियत चाहे भाड़ में जाये,  इंसानियत से किसी  का कोई भला थोड़े ही होता है भला तो पैसे से होता है और वो तो खुदा की रहमत कहे या इन्सान की शैतानियत हमारे देश के नेताओ के पास बहुत है बस एक कुर्सी की कमी है वो भी मिल ही जाएगी एक दिन अगर ऐसे ही कोशिश जारी रही तो।

कुर्सी की है तलाश मुझे
और कुछ नही चाहिए
नेता हूँ देश का
बस कुर्सी ही मुझे चाहिए

करना पड़े चाहे जो भी
हर काम मैं करूंगा
कुर्सी के लिए
खुद को बदनाम भी करूंगा

जरूरत जिसे है पैसो की
पैसे उसे मैं दूंगा
बन जाऊंगा मंत्री जब
तब सब कुछ वापस भी छीन लूँगा


एक बात मैं बहुत समय से सुनती आ रही हूँ लेकिन समझ नही पाई हूँ। अक्सर मैंने लोगो को यह कहते सुना है कि  जब तक देश की जनता नहीं जागेगी तब तक देश में हो रहे अपराध यूँ ही बढ़ते रहेंगे और भ्रष्टाचार देश से ख़त्म नही होगा। मैंने बहुत सोचा, बहुत सोचा लेकिन फिर भी नही समझ पाई की ये जनता है कौन जिसके जागने से देश में बदलाव आएगा। जहाँ तक मुझे लगता है मैं भी जनता का ही एक हिस्सा हूँ। जो लोग रेलवे स्टेशन पर, बस स्टैंड्स पर खाने- पीने का सामान बेचते हैं वो भी जनता का ही एक हिस्सा हैं और जो लोग सरकारी, गैर सरकारी दफ्तरों में काम करते हैं वो भी जनता का ही एक हिस्सा हैं। यहाँ तक कि जो लोग अपराधी होते हैं वो भी जनता का ही हिस्सा होते हैं।


जब भी किसी घोटाले की बात की जाती है तो आमतौर पर नेताओ को ही दोषी ठहरा दिया जाता है। जब भी भ्रष्टाचार की बात होती है तो भारत की ये सो कॉल्ड जनता नेताओ पर ही उंगली  उठाती नज़र आती है। लेकिन वो कहावत हैं न की अगर एक उंगली दुसरो की तरफ उठाते हो तो बाकि की बची हुई उंगलिया आपकी तरफ ही इशारा करती हैं। अपनी जनता का भी यही हाल है। नेताओ पर उंगली उठाने वाली अपनी ये जनता ये भूल जाती है कि भ्रष्टाचार के लिए जितने जिम्मेदार हमारे देश के नेता हैं उतने ही जिम्मेदार हम खुद भी है। जो लोग रेलवे स्टेशन व बस स्टैंड्स पर खाने- पीने का सामान बेचते हैं वो भी भ्रष्टाचार के उतने ही दोषी हैं जितने की देश के नेता, फ़र्क बस इतना सा है कि नेता लोग बड़े घोटाले करते हैं और हम जनता लोग छोटे। रेलवे स्टेशन व बस स्टैंड्स पर जो लोग बेकारी का सामान बेचते हैं वो ग्राहकों से सामान पर अंकित मूल्य से ज्यादा पैसे वसूलते हैं और अगर कोई विरोध करे तो यह कहकर सामान देने से मना कर देते हैं कि हम तो इतने ही लेते हैं लेना हो तो लो वरना जाओ। ये भी तो एक किस्म का भ्रष्टाचार ही है न। दूसरी और जो लोग सरकारी या गैर सरकारी दफ्तरों में काम करते हैं वो भी किसी ने किसी तरीके से गैर क़ानूनी पैसा कमाते हैं और ये कोई बनी बनाई बात नही है बल्कि मैंने खुद देखा है लोगो को ऐसे करते हुए। आप किसी भी ऑफिस में चले जाइये बिना पैसे लिए कोई आपका काम करने की सोचता भी नही है। स्कूलों, कॉलेजों में भी अधिकारी/कर्मचारी किसी न किसी तरह अपने स्वार्थ की पूर्ति करते नज़र आते हैं। किसी भी प्राइवेट या सरकारी नौकरी में आपको सिर्फ इसलिए सेलेक्ट नही किया जाता क्योंकि आपके पास उतने पैसे नही है देने के लिए जितने आपसे मांगे गये हैं डोनेशन के नाम पर। लोग परीक्षा से पहले ही पैसे देकर, अगर आम बोलचाल में कहूँ तो जैक लगाकर अपने बच्चे की सफलता की गारंटी ले लेते हैं। अब सवाल यह है कि क्या फर्क रह गया है भारत की आम जनता में और भारत के नेताओ में। दोनों ही तो भ्रष्टाचार को बढ़ा रहे हैं। भारत में बढ़ रहे अपराधो का कारण भी तो ये जनता ही है न। अपराधी भी तो इसी समाज का हिस्सा होते हैं देश की जनता का हिस्सा।


अगर सच में देश के हालत सुधारने हैं तो देश की जनता को सिर्फ जागना ही नही होगा बल्कि बदलना भी होगा। दुसरो पर दोष लगाने से पहले खुद के अंदर झाकना होगा। जब तक ये छोटे छोटे घोटाले यूँ ही होते रहेंगे तब तक बड़े घोटाले भी नही रोके जा सकते। जरूरत देश के नेताओ को मुर्दाबाद कहने की या  गाली देने की नही है बल्कि हम सभी को बदलने की है तभी देश के नेता भी बदलेंगे और शायद देश के हालात भी।

अंत में ये चंद लाइन ….

ये दुनिया की रस्मे
ये रीति- रिवाज
नहीं काम की चीज कुछ भी
आज………………..
ख़त्म हो रहा है
मोहब्बत का रिश्ता
वफा बन गयी है
वफा की मोहताज
ये दुनिया की रस्मे………………
तडपता – तरसता
हर दिल यहाँ है
प्यार पल पल में होता
बदलता जहाँ है
लाख अपराध कर ले
चाहिए फिर भी
सभ्य समाज
ये दुनिया की रस्मे ……………….
न खुशिओ की चर्चा , न गम का फ़साना
ये दुनिया है मेला , न कोई ठिकाना
ये सच जनता है हर एक इंसान
मगर अनसुनी कर रहा है
मन की आवाज
ये दुनिया की रस्मे ………………..!!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply