धीरे बोलो न माँ ….. Meri udaan mera aasman हार नही है जीत नही है जीवन तो बस एक संघर्ष है ........ तन्हा- तन्हा, चुपके चुपके
आँखों से आंसू बहते है
धीरे- धीरे, चुपके से सब आंसू दुपट्टा पी लेता है
कितनी बाते हैं करने को
फिर भी लब सील के बैठी है
दर्द के साये में पलती धड़कन
मांगी जब भी सूरज से किरणे
या चाँद से जब भी मांगी चांदनी
सुबह से जब माँगा उजाला
हिमालय से ऊँचे सपने
आकाश से ज्यादा विस्तार
डायरी के पिछले पन्नो पर आज भी जिन्दा है वो भुला हुआ प्यार
सखी, सहेली सब छुट गई
मन से भी बिसरा दी सभी
नए रूप में ढलकर अब
ख़ामोशी से बाते करना
सीख लिया है उसने शायद
मन में जब भी जो भी चुभता
बहुत सुनी हैं उसने बाते
कुछ गैरो की, कुछ अपनों की बाते
कुछ नीम सी बाते, कुछ शहद सी बाते कहीं कोई फिर से जिक्र न कर दे …..
क्या पाया लिख पढ़कर तुमने
घर-गृहस्थी में उम्र गवां दी
कहीं कोई अब करता है ये …………….
तुम भी तो हो उसी घर का हिस्सा
फ़र्ज था मेरा एहसान नही था
हँसते हैं तो मुझपर हंस ले लोग धीरे बोलो न माँ कहीं मेरे दोस्त न सुन ले ……..!!!!!!!!!
सोनम सैनी
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