शांति आज कुछ अशांत सी लग रही थी। बार बार उसकी नज़रे दरवाज़े पर जाती और एक उदासी लेकर वापस लौट आती। उसके बार-बार दरवाज़े को एक सवाल भरी निगाह से देखने से पता चल रहा था कि वो बेसब्री से किसी के आने का इंतज़ार कर रही है। मगर किसके आने का वो भी इतनी बेसब्री से कि उसकी नज़रे दरवाज़े से हट ही नही रही थी या शायद नज़रे भी आने वाले को साथ लेकर ही शांति के पास वापस लौटना चाहती थी। खैर जो भी हो आखिर दूर से आते हुए एक शख्स को देखर शांति के चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट आई और साथ ही संतोष का एक भाव भी। शांति के चेहरे पर आने वाला यह भाव बिलकुल उस बच्चे के चेहरे के भाव जैसा था जो अक्सर अपनी किसी जरूरत को पूरा करवाने के लिए शाम को पापा के आने का इंतज़ार करता है। बड़े बेटे के काम से लौटने के बाद फिर से शांति की नज़रे दरवाज़े पर जा टिकी और इंतज़ार करने लगी कि कब छोटा बेटा और दोनों बहुएँ आये और वो उनको उनका पसंदीदा खाना खिलाते हुए उनसे अपने तीर्थ पर जाने की बात करे।
दरअसल कल पड़ोस की सभी वृद्ध महिलाओ ने मिलकर तीर्थ पर जाने का प्रोग्राम बनाया है जिनमे शांति भी शामिल है। साथ ही यह भी निर्णय लिया गया है कि सभी महिलाये जो राशि तीर्थ पर जाने के लिए प्रत्येक महिला के लिए निर्धारित की गयी है वह दो दिन के अंदर ही जमा करवा दें जिससे की समय पर जाने की तयारी हो सके। शांति ने तीर्थ पर जाने वाली महिलाओ की सूची में अपना नाम तो लिखवा दिया था लेकिन उसके लिए सबसे बड़ी परेशानी पैसो को लेकर थी। कल से वो इसी सोच में डूबी थी कि आखिर वो दो हज़ार रूपये कहाँ से लायेगी और अगर पैसो का इंतजाम कहीं से कर भी लेती है तो क्या उसके बहु- बेटे उसके तीर्थ पर जाने के लिए मान जायेंगे।
इसी उधेड़ बुन में वह कल भी उनसे बात करने से रह गयी थी लेकिन आज, आज तो बात करना बेहद जरुरी था बस आज ही का तो समय है उसके पास अगर आज भी बात नही की तो कल पैसे कैसे जमा करवा पायेगी और अगर कल निश्चित की गयी राशि जमा नही करवाई तो वह तीर्थ पर नही जा पायेगी।
बच्चो को खाना परोसते हुए आखिर शांति ने हिम्मत करके अपनी बात बच्चो के सामने रख ही दी।
पड़ोस की सभी वृद्ध महिलाओ ने मिलकर तीर्थ पर जाने का प्रोग्राम बनाया है ….कल तक सभी को दो हज़ार रूपये जमा करवाने हैं। मैं सोच रही हूँ अगर मैं भी उनके साथ.…
माँ आप क्या करोगी तीर्थ पर जाकर आपके बिना ये घर कैसे चलेगा ? बड़ी बहु ने बड़े ही प्रेम से माँ से कहा.….
हाँ माँ दीदी सही कह रही है आप तीर्थ पर चली जाओगी तो हमारे ऑफिस चले जाने के बाद घर पर कौन रहेगा , बच्चो की देखभाल कौन करेगा … छोटी बहु ने बड़ी बहु से सहमती जताते हुए कहा।
लेकिन बेटा मैंने अपना नाम सूची में लिखवा दिया है
तो क्या हुआ माँ नाम कट भी तो सकता है न …. वो कोई पत्थर की लकीर तो है नही कि मिट ही न सके ……बड़े बेटे ने आवाज़ तेज़ करते हुए कहा।
अगर बच्चो को राधिका के घर छोड़ दे तो ……… वो बच्चो का बड़े अछे से ध्यान रखेगी और बस दो दिनों की ही तो बात है, माँ ने बड़ी उम्मीद से बहु- बेटो की तरफ देखा …।
राधिका के पास —- नहीं नहीं ये ठीक नही है और बच्चो को छोड़ने और लाने का समय किसके पास है हमे सुबह जल्दी ऑफिस जाना होता है अगर छोड़ने और लाने में लग गये तो ऑफिस कब जायेंगे? बड़े बेटे ने गुस्से में नाराजगी को घोलते हुए कहा ……
माँ का उदास चेहरा देखकर छोटे बेटे ने कुछ सोचते हुए कहा —– चलो एक बार को मान भी लेते हैं कि बच्चो को राधिका के घर छोड़कर, घर को लॉक कर के हम ऑफिस निकल जायेंगे लेकिन बात सिर्फ घर की या बच्चो की ही नही है तीर्थ पर जाने के लिए जो दो हज़ार रूपये चाहिए वो हम कहाँ से लायेंगे। भई मेरे पास तो इतने पैसे है नही कि उन्हें इन फिजूल की बातो पर खर्च करूँ।
सचिन सही कह रहा है, बड़े बेटे ने भी छोटे की हाँ में हाँ मिला दी …….
क्या तुम लोगो के पास मुझे देने को सिर्फ दो हज़ार रूपये भी नही हैं , माँ ने थोडा उदासी भरे स्वर में कहा
आज की इस बढती मंगहाई में दो हज़ार रूपये बहुत होते हैं माँ लेकिन आपको ये सब क्या पता घर का खर्च तो हमे चलाना पड़ता है न, बड़े बेटे ने गुस्से से कहा
मंगहाई तो सभी के लिए है, सिर्फ एक हमारे लिए ही तो नही है न। पड़ोस से सभी तो जा रही हैं। नीरज की माँ भी जिनका बेटा तुम लोगो से तो कम ही कमाता है। उसने तो अपनी माँ को मंगहाई का बहाना बनाका पैसे देने से इंकार नही किया।
तभी बड़े बेटे ने चिल्लाकर कहा —– नीरज की माँ को पेंशन मिलती है माँ।
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