ईमान बिक चुका है इंसानियत मर चुकी है इंसान के अंदर अब कुछ नही बचा ऐसा कि वो हक रखता हो इंसान कहलाने का…..
दिल देना भूल गया है शायद खुदा अब अपने बन्दों को शायद जल्दी में होगा वो भी आजकल इंसान की तरह वरना दिल हो किसी के सीने में और दया व संवेदनाएँ न हो ऐसा तो हो नही सकता………
आत्मा मरती नही थी पहले मरने के बाद भी लेकिन…….. आजकल मर जाती है आत्मा इन्सान के जीते- जी ही सच है घोर कलयुग है ये घोर कलयुग……..
ये हमारा समाज है कुछ ऐसा करो कि समाज के लिए मिसाल बन जाओ समाज के भले के लिए कोई काम करो समाज के हिसाब से चलो समाज के रीति-रिवाजो को मानो कौन सा समाज ?
वो समाज जहाँ सामाजिकता है ही नही वो समाज जिसमे नियम और कानून तो हैं लेकिन सिर्फ कमजोर और असहायों के लिए क्या समाज का काम सिर्फ निर्दोषों के दामन पर कीचड़ उछालना है अपराधियों का क्या कोई समाज नही होता ?
किसी की जान की कीमत सिर्फ इतनी है कि वो लड़का है या लड़की लड़का हुआ तो कीमती है मगर अगर लड़की हुई तो या तो माँ -बाप ही जन्म लेने से पहले ही सुला लेते हैं मौत की नींद या फिर माँ – बाप अच्छे हैं तो समाज है न भरपाई करने के लिए………..
कभी रक्षक बनकर लूट लेते हैं तो कभी राक्षश बनकर कभी अनजान बनकर तो कभी अपने बनकर लेकिन लूटते जरुर हैं ऐसा न करे अगर तो एहम जिन्दा कैसे रहेगा ये हमारा समाज एक सभ्य समाज सभ्य कैसे कहलायेगा…….
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