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सितम्बर का महिना आया तो याद आया…….(हिंदी ब्लॉगिंग हिंदी को मान दिलाने में सार्थक हो सकती है या यह भी बाजार का एक हिस्सा बनकर रह जाएगी?)

Meri udaan mera aasman
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सितम्बर का महिना आया तो याद आया
मैं हिंदुस्तानी हूँ और मेरी भाषा हिंदी है…..


आज हिंदी माँ की हालत कुछ अच्छी स्थिति में लग रही है खासकर जागरण जंक्शन पर । हिंदी माँ भी खुश हो रही होगी आज खुद को इतना सम्मान मिलता देखकर। जिसको देखो माँ का गुणगान किये जा रहा है। आजकल जागरण जंक्शन पर हिंदी को सम्मान दिलाने के लिए हजारो की संख्या में लेख प्रकाशित हो रहे हैं जिनमे से अगर मैं ईमानदारी और सच्चाई से बताऊ तो मैंने सिर्फ दो या तीन लेख ही पूरे और कई बार पढ़े और जिस पर प्रतिक्रियां भी दी बाकि भी पढ़े हैं लेकिन आधे- अधूरे।


हिंदी को हम सब माँ कहते हैं और सिर्फ कहते ही नही है बल्कि मानते भी हैं। वास्तव में हिंदी हमारी माँ है भी सिर्फ कह देने भर के लिए नही बल्कि इसलिए भी क्योंकि हम हिंदी के साथ भी वही सब कर रहे हैं जो अपनी माँ के साथ करते हैं।


अक्सर ऐसा देखा गया है कि जब भी बच्चो को किसी वस्तु की जरूरत होती है तो वो सबसे पहले और सबसे आखिर में भी अपनी माँ से ही उस वस्तु को मांगता है। यहाँ तक कि अगर वह वस्तु उसे पापा से या घर के किसी और सदस्य से भी मिल सकती है तो भी वह बच्चा उस वस्तु को अपनी माँ से मांगना ही बेहतर समझता है। वो शायद इसीलिए क्योंकि वो बच्चा भी जानता है कि घर के बाकि सदस्य शायद उसे वो वस्तु देने के लिए मना भी कर दे लेकिन माँ – माँ कभी मना नही करेगी।


यही बात हम बच्चो पर हिंदी माँ के लिए भी लागु होती है। सच बताइएगा अगर जे जे हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में इस प्रतियोगिता का आयोजन नही करता तो क्या हिंदी माँ को सम्मान दिलाने के लिए इतनी अधिक संख्या में लोग लेख लिखते? मेरे अनुसार तो शायद नही और देखिएगा जैसे ही यह प्रतियोगिता समाप्त होगी वैसे ही हिंदी के सम्मान पर लिखे जाने वाले लेखो पर भी विराम लग जायेगा। तब न किसी को इस बात की चिंता होगी कि हिंदुस्तान में हिंदी बोलने वालो को क्यों उपेक्षित समझा जाता है और न ही इस बात की कि हिंदी को सम्मान दिलाने के लिए हमे ही शुरुआत करनी होगी।


वास्तव में अगर देखा जाये तो सिर्फ कुछ लेख लिख देने से या सिर्फ हिंदी में ब्लोगिंग करने से हिंदी को सम्मान नही मिल सकता क्योंकि सम्मान तो दिल से होता है। हिंदी का प्रयोग ब्लॉग लिखने के लिए भी हम सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए करते हैं। अपने स्वार्थ के लिए इसीलिए क्योंकि हम अपनी रचना को सर्वश्रेष्ठ बनाना चाहते है, हमारी रचना को ज्यादा से ज्यादा लोग पढ़े यह चाहते हैं और यह तभी संभव होता है जब हम अपनी रचना को हिंदी भाषा में लिखते हैं क्योंकि हिंदी भाषा सभी को आसानी से समझ में आ जाती है।


इसका साफ़ साफ़ मतलब है कि अगर हमे जरूरत न हो तो हम जितना प्रयोग हिंदी का करते हैं उतना भी न करे। आज हम हिंदी भाषा के विषय में जो बड़े बड़े लेख लिख रहे हैं वो इसलिए नही कि हम वास्तव में हिंदी को सम्मान दिलाना चाहते हैं बल्कि इसलिए लिख रहे हैं क्योंकि हमे खुद सम्मान चाहिए। एक सच्चाई यह भी है कि आज हमारे हिंदी में लिखने, हिंदी को सम्मान दिलाने की बात कहने का मकसद वास्तव में हिंदी भाषा को सम्मान दिलाना हो या न हो लेकिन पुरस्कार जीतना जरुर है।


हिंदी ब्लोगिंग हिंदी को मान दिलाने में सहायक हो सकती है या यह भी बाज़ार का एक हिस्सा बनकर रह जाएगी — इस प्रश्न का उत्तर अगर मैं अपने अनुसार दूँ तो मेरा मानना यह है कि सिर्फ हिंदी में ब्लॉग लिख देने से हिंदी को सम्मान नही मिल सकता! हाँ अगर हम सभी हिंदुस्तानी लिखने – पढने के साथ साथ हिंदी का प्रयोग बोलचाल में भी करें तो शायद हम हिंदी माँ को अपने ही घर में अपमानित होने से बचा सकेंगे!

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