क्या हमे सिर्फ “परिचय” के लिए भी अंग्रेजी भाषा का सहारा लेना पड़ेगा ??????
Meri udaan mera aasman
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हिंदी गरीबो अनपढो की भाषा बनकर रह गयी है – यह कथन सत्य नही है क्योंकि हिंदी गरीबो अनपढो की भाषा बनकर रह नही गयी है बल्कि हमने हिंदी को गरीबो और अनपढो की भाषा बना दिया है।
अभी लगभग दो – तीन महीने पहले मैंने एक कंपनी में साक्षात्कार के लिए फ़ोन किया। हेलो कहने के बाद जैसे ही मैंने हिंदी में अपना परिचय देना शुरू किया सामने से आवाज़ आई “प्लीज स्पीक इन इंग्लिश” ! यह सुनकर मुझे थोडा बुरा लगा और तभी से एक प्रश्न मेरे दिमाग में घूम रहा है कि क्या हमे अपने ही देश में “सिर्फ परिचय” के लिए भी अंग्रेजी ही बोलनी पड़ेगी ? क्या हम भारतीय आपस में भी हिंदी में बात नही कर सकते ?
हिंदी मेरी जान है हिंदी मेरी शान है यह लिखना बहुत आसान है …
हिंदी मेरी “मातृभाषा” है हिंदी न एक “मात्र भाषा” है हिंदी मेरी पहचान है यह कहना बहुत आसान है
मैं आवश्यक कदम उठाऊंगा हिंदी को सम्मान दिलाऊंगा हिंदी ही मेरा अभिमान है यह शपथ लेना बहुत आसान है
मैं हिंदी को प्यार करूंगा घर में, दोस्तों से हिंदी में बात करूँगा मैं हिंदी को दिल से अपनाऊंगा इस द्रढ़ निश्चय में जाती जान है
हिंदी की उपेक्षित स्थिति को देख कर, हिंदी को अपमानित होते देखकर शायद हम सब अंग्रेजी भाषा को इसका जिम्मेदार मानेगे ! क्योंकि हिंदुस्तान में एक अंग्रेजी भाषा ही है जिसने धीरे धीरे हिंदी के महत्त्व को ख़त्म कर दिया है ! यही सच है लेकिन यह सच अधुरा है ! हिंदी को गरीबो अनपढो की भाषा बनाने में पूरी तरह से अंगेरजी का हाथ नही है बल्कि इसके लिए कहीं न कहीं हम भारतवासी ही स्वयं जिम्मेदार है !
दरअसल हमने अपने दिमाग में यह सोच बना ली है कि अगर हमे अंग्रेजी भाषा का ज्ञान नही है तो हम अनपढ़ दिखाई देंगे और अनपढ़ कहलायेंगे भी ! ऐसा हम इसलिए नही सोचते क्योंकि विदेशी हमे ऐसा सोचने पर मजबूर करते हैं बल्कि ऐसा हम इसलिए सोचते हैं क्योंकि हमारे अपने देशवासी ही हमे ऐसा सोचने पर मजबूर करते हैं !
कई बार ऐसा होता है कि हम कोई फॉर्म भरते हैं किसी कॉलेज में या फिर कहीं किसी बैंक में ! फॉर्म भरने के बाद बारी आती है हस्ताक्षर करने की ! आजकल यह हम सभी की आदत हो गयी है कि हम चाहे कही भी हस्ताक्षर करे हमेशा अंग्रेजी भाषा में ही करते हैं ! अगर यहाँ मैं यह कहूँ कि हम में से अधिकतरो को तो यह भी याद नही होगा कि हमने आखरी बार हिंदी में कब हस्ताक्षर किये थे तो यह कोई अतिशयोक्ती नही होगी ! ऐसे में अगर हमे कोई ऐसा फॉर्म दिखाई दे जिस पर हिंदी में हस्ताक्षर किये हुए हैं तो बिना एक सेकंड गवाए हमारे मन में यह ख्याल आ जाता है कि जिस व्यक्ति का वह फॉर्म है वह तो बिलकुल अनपढ़ गंवार है जिसे अंग्रेजी में अपना नाम तक लिखना नही आता ! यही हाल रेलवे स्टेशन, रेस्टोरेंट, अस्पताल, स्कूल- कॉलेज में भी होता है ! अगर आपको अच्छी अंग्रेजी बोलनी (लिखने से जरूरी बोलना) नही आती तो आपको अनपढ़ गंवार समझा जाता है।
अधिकतर लोगो की तरह मेरा भी यही मानना है कि अगर हमे अपने करियर में आगे बढ़ना है तो हमे अंग्रेजी भाषा को अपनाना ही होगा लेकिन अपनी मातृभाषा हिंदी को उपेक्षित और अपमानित किये बिना !
अगर हम जरूरत के समय (जैसे कार्य स्थल पर, पढाई में या किसी ऐसे व्यक्ति के साथ बात करते हुए जिसे हिंदी समझ नही आती हो ) ही अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करें और बाकि सभी के साथ जैसे घर पर , दोस्तों से बात करते समय हिंदी का प्रयोग करे तो निश्चित ही हिंदी को उसका खोया हुआ सम्मान दिला पाएंगे। यहाँ एक बात स्पष्ट और जरूरी तौर पर कहना चाहूंगी कि अगर हम किसी को हिंदी बोलता, लिखता देखकर उसका मजाक न बनाये और उस पर न हँसे और अगर कोई हिंदी में हमसे बात कर रहा है तो उसे हिंदी में ही जवाब दे तो शायद हम हिंदी को उसी के घर में अपमानित होने से बचा पायेगे।
क्योंकि बाहर वाले चाहे जो कुछ भी कहे इतना बुरा नही लगता लेकिन जब हमे अपने ही घर में उपेक्षित समझा जाता है और हमारे ही घर के सदस्य जब हम पर हँसे, हमे अपमानित करे तो वह दर्द असहनीय होता है। इसी दर्द से आज हिंदी भी गुजर रही है। अपने ही घर में अपमानित होने के दर्द से।
हिंदी को इस दर्द से हम ही निकाल सकते हैं। हम “हिंदी ” के अपने।
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