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पीड़ा का रिश्ता मात्र जीव से है ……..

Meri udaan mera aasman
Meri udaan mera aasman
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जब भी कोई रामायण को देखता है या पढता है या फिर उसके बारे में सुनता है तो उन देखने, सुनने, या पढ़ने वालो में से अधिकतर लोगो के मन में जो पहला प्रश्न उठता है वो है कि भगवान श्री राम ने सीता माता के साथ ऐसे क्यों किया ?


क्यों श्री राम ने सीता मैया को जंगल में भटकने के लिए छोड़ दिया ? वो भी बिना किसी अपराध के। क्या श्री राम को सीता मैया का दर्द उनकी तकलीफ दिखाई नही दी ? रामायण के बारे में जानने के बाद अधिकतर लोगो को श्री राम पर गुस्सा भी आया होगा और उनकी नज़रो में भगवान श्री राम एक बहुत बड़े अपराधी भी होंगे ? आप लोग क्या सोचते है ये कि भगवान श्री राम ने सीता माता पर जानबूझकर अन्याय किया या ये कि रामायण में जो भी हुआ उसमे सिर्फ और सिर्फ सीता माता को ही दर्द और तकलीफ से गुजरना पड़ा ? आप सभी का क्या मत है ?

अधिकतर ऐसा होता है कि जब भी (आज कलयुग में भी) किसी स्त्री पर कहीं कोई पुरुष अत्याचार करता है तो सबसे पहला जो उदाहरण दिया जाता है वो है श्री राम का। स्त्री कहती है कि “सॉरी सॉरी” अधिकतर स्त्रियाँ ऐसा कहती हैं कि स्त्रियो पर अत्याचार तो भगवान के टाइम से ही होता आ रहा है। जब भगवान ने ही एक निर्पराध स्त्री से पहले अग्नि परीक्षा ली और फिर सिर्फ कुछ लोगो के कहने पर वनवास भेज दिया तो फिर इंसानो से क्या अपेक्षा की जा सकती है। वैसे अगर देखा जाये तो बात सही भी है लेकिन पूरी तरह से नही।


जो लोग स्त्री जाति पर या यूँ कहूं कि सीता माता पर होने वाले अन्याय के लिए श्री राम को दोषी मानते है उनके बारे में मैं सिर्फ इतना ही कहूँगी कि या तो उन लोगो ने रामायण को ठीक से पढ़ा या देखा नही (टीवी पर) या फिर वो उन लोगो में से हैं जो स्त्रियो पर होने वाले हर छोटे-बड़े अपराध या अन्याय के लिए सिर्फ और सिर्फ पुरुषो को ही दोषी मानते हैं।

रामायण में तो सब कुछ बहुत ही साफ-साफ दर्शाया गया है ! रामायण को हम एक मनुष्य होने के नाते न देखकर अगर खुद को परम पिता परमात्मा की एक रचना मानकर देखे तो रामायण में हमारे पूरे जीवन का सार मिलता है (ऐसा मेरा व्यक्तिगत मत है इससे आप सभी सहमत हो ये जरूरी नही) ! रामायण एक पूर्व रचित कथा है जिसे उसके घटित होने से पहले ही रच दिया गया था ! कब, कहाँ, किसके साथ क्या होना है सब पहले से ही निर्धारित था ! अगर किसी ने ध्यान से देखा हो तो रामायण में यह साफ तौर पर बताया गया है कि भगवान राम ने सीता माता की अग्नि परीक्षा इसलिए नही ली थी कि उन्हें उनकी पवित्रता पर संदेह था बल्कि जिसे दुनिया सीता माता की अग्नि परीक्षा समझती है वो अग्नि परीक्षा नही अग्नि देव से सीता माता को वापस लेने की एक प्रक्रिया थी जिसे हम कलयुग के तुच्छ से प्राणी एक पुरुष द्वारा स्त्री पर किये गये अत्याचार के रूप में देखते हैं ! ऐसा घटित होना पहले से ही तय था जिसे चाहकर भी कोई रोक नही सकता था, खुद ईश्वर भी नही !


श्री राम द्वारा “सिर्फ कुछ लोगो के कहने पर” सीता माता को वनवास भेजा जाना भी पहले से ही तय था जिसे न तो श्री राम रोक सकते थे न सीता मैया और न ही कोई और ! अयोध्या के जिन लोगो को सीता माता को वनवास भेजने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है वास्तव में वो उसके जिम्मेदार होते ही नही है क्योंकि रामायण के अंत में यह दर्शाया गया है कि अयोध्या के जिन जिन लोगो ने और बाकि सभी ने भी जैसे सुग्रीव, विभीषण आदि किसी न किसी देवता के ही रूप थे ! एक बार को अगर ऐसा मान भी लिया जाये कि ऐसा कुछ नही था सभी सामान्य मनुष्य ही थे न कि किसी देवता का स्वरुप तो भी श्री राम कहीं भी किसी भी रूप में सीता माता के साथ हुए अन्याय के लिए पूर्ण रूप से जिम्मेदार नही थे ! सीता माता ने ही खुद श्री राम को लोगो के आरोपो से बचाने के लिए खुद वनवास जाने का फैसला किया था !


खैर मेरा आप लोगो को रामायण का पाठ पढ़ाने का कोई उद्देश्य नही है। मैं बस इतना ही कहना चाहती हूँ कि रामायण में जो भी हुआ उसमे सीता माता को जितनी पीड़ा सहनी पड़ी उससे कहीं ज्यादा श्री राम ने पीड़ा सही ! हाँ इतना आसान नही होता अपना सब कुछ छोड़कर वन में चले जाना जीवन भर के लिए बहुत-बहुत मुश्किल होता है सब के साथ रहते हुए अपनी पीड़ा को अपने मन में ही छुपाये रखना। सब कुछ होते हुए भी महल के अंदर ही वनवासियों की तरह जीवन यापन करना। अपने मन की पीड़ा को अनदेखा करके पूरी प्रजा के बारे में सोचना और अपने सबसे प्रिय इंसान को दुसरो की ख़ुशी के लिए खुद से दूर कर देना बहुत बहुत कठिन कार्य है जिसे सिर्फ श्री राम जैसा महान व्यक्ति ही कर सकता है। कोई जाने या न जाने, माने या न माने लेकिन श्री राम की इस पीड़ा को सीता माता अच्छे से जानती भी थी और समझतीभी थी कि उनके साथ जो भी हुआ उससे श्री राम को कितनी पीड़ा हुई है शायद उन से भी ज्यादा।


रामायण से मुझे दो बाते समझ में आती हैं पहली ये कि हम सभी इस दुनिया में एक चरित्र प्ले करने आये हैं। सभी का अपना-अपना काम है जिसे सबको करना है। जिस दिन वो काम खत्म उस दिन मृत्यु हो जाती है फिर चाहे वो किसी भी कारण से हुई हो। सब कुछ पहले से निर्धारित है। कब किसके साथ क्या होना है सब पहले से ही तय हो चुका है हमे तो बस उस तय किये हुए को अपने कर्मो से लक्ष्य तक पहुँचाना है। और दूसरी बात जो मुझे समझ में आती है वो ये कि पीड़ा का रिश्ता किसी स्त्री पुरुष से नही है यह तो हर उस जीव से जुडी है जिसने इस धरती पर जन्म लिया है फिर वो चाहे किसी भी रूप में हो।



पीड़ा का रिश्ता
मात्र जीव से है
किसी स्त्री या
पुरुष से नही
पीड़ा पर सिर्फ
मनुष्य का ही
एकाधिकार हो
ऐसा सम्भव नही
क्योंकि
पीड़ा तो हर
उस जीव को
होती है
जिसने इस
धरती पर
जन्म लिया है
फिर चाहे वो
स्वयं भगवान
ही क्यों न हो
माँ से बिछड़ता
है बच्चा तो पीड़ा
तो होती ही है
माँ को भी
बच्चे को भी
फिर चाहे वो इंसान हो
या कोई जानवर
या फिर कोई जीव जंतु
पीड़ा का रिश्ता
मात्र जीव से है
किसी स्त्री या
पुरुष से नही
और न ही
सिर्फ मनुष्य से

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