सुकून थोडा सा चाहिए जीने के लिए मौत तो आएगी एक दिन मुझे मालूम है …
दिल में एक हलचल मची हुई है, लगता है जैसे कोई तूफान उठा हो, सही-गलत, सच-झूठ, इन सबके बीच में मन उलझा हुआ है, सच कहूँ तो शाम तक सब ठीक ही था, मन में जितनी भी हलचल है सब शाम के बाद से ही उठी है, दिन भर के काम के बाद शाम को जैसे ही व्हाट्सअप्प ऑन किया फटाफट मेसेज आया, मेसेज एक जलती हुई मोमबत्ती के साथ कुछ इस तरह लिखा था …
Please keep this candle as your profile DP for One day: To pay Homage to 138 Children of Army School of Peshawar.
फेसबुक ऑन किया तो अलग-अलग शब्दों में पिरोये हुए अलग-अलग स्टेटस को एक ही अर्थ देते हुए देखा तो समझ आया कि आखिर हुआ क्या है, वापस से फिर व्हाट्सअप्प ऑन किया और फिर से वो मेसेज पढ़ा, अब तक मेरी कांटेक्ट लिस्ट में अधिकतर लोगो की डी पी में वो मोमबत्ती वाली तस्वीर लग चुकी थी ! हाँ ये अलग बात है कि मैंने अब तक नही लगाई, क्योंकि ये मेरी व्यक्तिगत राय है कि व्हाट्सअप्प या फेसबुक पर प्रोफाइल में मोमबत्ती की फोटो लगाने से किसी की आत्मा को शांति मिल जाएगी, हाँ अगर हम सच्चे मन से भगवान् से उनकी आत्मा को शांति देने और मुक्त करने की प्रार्थना करे तो शायद कुछ असर हो, जो मैंने किया ही है, ! जानती हूँ कि अक्सर सच्चे मन से की गयी दुआये बहुत जल्दी कुबूल हो जाती हैं ! कुछ ने देखम देखी फोटो लगा दी और दूसरी और कुछ लोग ऐसे भी है जिन्होंने वो फोटो लगे है और जो सच में उस निंदनीय घटना से सदमे में हैं ! जिनका दिल वास्तव में उन बच्चो, उनके माता पिता और शिक्षको के लिए रोया है !
मौत –एक अनसुलझी कहानी, मौत जो बिना रिश्ते के भी अपने लिए पराये लोगो के दिलो में हमदर्दी, सहानुभूति पैदा कर देती है, मौत जो एक अनजान इन्सान के दिल में एक अनजान इन्सान के लिए दर्द पैदा कर देती है ! अभी कुछ दिन पहले ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज फिल की मौत एक गेंद लगने से हुई थी, तब उस खबर ने या यूँ कहूँ की फिल ने मन पर इतना प्रभाव डाला की उससे सम्बंधित हर एक खबर मैंने अख़बार में ढूंड-ढूंड कर पढ़ डाली, न जाने क्यों बार-बार यही लगता था कि वो मरा नही है अभी, वो वापस आएगा, आकर खेलेगा, पहले की ही तरह, हलाकि इस घटना से पहले मैंने कभी उसका नाम तक भी नही सुना था !
जहाँ मैं काम करती हूँ, उस कॉलेज में फर्स्ट इयर का एक स्टूडेंट था “शुभम कुमार गुप्ता”, तीन बहनों का एकलौता भाई, छट पूजा पर अपने घर बिहार गया था और फिर कभी वापस लौट कर नही आया ! वह अपने पिता के साथ नदी में खड़े होकर पूजा कर रहा था, न जाने ऐसा क्या हुआ कि पिता और बेटा दोनों ही नदी में डूब गये, दोनों की मौत हो गयी ! उसकी मौत भी मेरे लिए किसी सदमे की तरह ही थी, पहले मुझे उसका नाम तक भी नही पता था और बाद में मुझसे वो भुलाया नही जा रहा था !
दिल्ली में एक नाबालिक लड़के ने एक मंहगा मोबाइल खरीदने के लिए एक 12 साल के बच्चे को किडनैप कर लिया और उसकी हत्या कर दी, एक दोस्त ने मामूली सी बात पर अपने 19 साल के दोस्त की चाकू घोप कर हत्या कर डाली, माँ-बाप का वो एकलौता बेटा था !
दामिनी उर्फ़ ज्योति के बारे में जब-जब सोचती हूँ मेरी रूह तक कापने लगती है ! और भी बहुत सी घटनाये है जो कई बार बिना बात के दुखी कर जाती है ! बिना बात के – बिना बात के इस लिए कि मौत पर किसी का कोई बस नही चलता ! मौत जाति, धर्म, देश देखकर नही आती, न वो ये देखती है कि सामने वाला बच्चा है, बुढा है या जवान ! एक सवाल जिसका जवाब ढूँढना चाहती हूँ वो है इस दुनिया का रहस्य ! सुना है भगवान् सबको उसके कर्मो की सजा देता है, अगर ऐसा है तो फिर पेशावर में जो हुआ वो क्यों हुआ, क्योंकि अगर मजहब और देश के अनुसार चले तो वहां तो भगवान रहते ही नही है, वहां तो खुदा रहते हैं, फिर खुदा ने क्यों और किस लिए उन मासूम से बच्चो को सजा दी, उनके माता-पिता को कभी न भरने वाले जख्म दिए ? और अगर वो खुदा ने नही किया, उसका जिम्मेदार खुदा नही है तो फिर ऐसा क्यों कहा जाता है कि उस रब की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नही हिलता !
अगर सब कुछ उस रब, उस खुदा, उस भगवान की मर्ज़ी से होता है तो फिर इसके लिए किसी इन्सान को क्यों दोष ? मैं समझना चाहती हूँ, ये जानना चाहती हूँ कि आखिर इस दुनिया का राज़ क्या है, मौत क्या है, जो लोग अचानक गाड़ी के नीचे आकर मर जाते हैं वो उनके खुद के कर्मो की सजा होती है या उस गाड़ी वाले का दोष या फिर भगवान की मर्ज़ी ?? दामिनी के साथ जो अमानवीय व्यवहार हुआ उसका जिम्मेदार आखिर कौन है ??? भगवान या इन्सान ??? दुनिया में फैले हुए आतंकवाद को जब देखती हूँ, कुछ मुस्लिम देशो में महिलाओ को निकाह से इंकार करने पर क़त्ल कर देने के बारे में जब पढ़ती हूँ, अपने ही देश में लुट, हत्या, बलात्कार जैसी घटनाओ को बढ़ते हुए जब देखती हूँ तो एक विचार मन में ये भी आता है कि क्या फायदा है इस जीवन का ? किस लिए मैं सपने देखती हूँ, किस लिए आगे बढ़ने के लिए मेहनत करती हूँ, लगता है जैसे सब बेकार ही हो, कल का क्या भरोसा, न जाने कब कौन से पल में मेरे साथ क्या हो जाये, न जाने कब कोई आतंकवादी अपना निशाना हमे बना दे, न जाने कब सब खत्म हो जाये, और फिर इस शरीर का भी तो कोई भरोशा नही है, कब कौन सी बीमारी इसे जकड ले, कब एक जान लेवा बीमारी आकर मुझसे कहे कि चल अब तेरा वक़्त पूरा हुआ !
बहुत से सवाल हैं जिनके जवाब ढूँढना चाहती हूँ, इस दुनिया के रहस्य को जानना चाहती हूँ, मौत का सही अर्थ क्या होता है ये जानना चाहती हूँ, जीवन क्यों मिलता है ये जानना चाहती हूँ ! जानना चाहती हूँ कि जिस मन में बाहरी रूप से कोई काँटा नही चुभता, जिसमे अंदर कोई आता-जाता नही दीखता, जिसमे कोई खंज़र नही चुभोता उस मन को इतनी पीड़ा, इतना दर्द क्यों होता है?? क्यों वो बेचैन रहता है ?? वो कौन सी आँखे हैं जो इन बाहरी आँखों के बंद होने पर भी किसी को देख लेती है? जबान खामोश रहती है मगर न जाने कौन है वो जिसकी आवाज़ मेरे अंदर गूंजती रहती है ??
बहुत कुछ बाकि है जानना, अपने इस जीवन को इसी खोज के लिए समर्पित करना चाहती हूँ, जितना वक़्त है उसमे सब कुछ जान लेना चाहती हूँ ताकि आखरी उस वक़्त में मुझे मेरी मौत का कोई अफ़सोस न हो ! जान लेना चाहती हूँ कि उस औरत की क्या गलती थी जिसने अपना पति और बेटा दोनों को एक साथ खो दिया ! जानना चाहती हूँ कि मौत आती है इन्सान को साथ ले जाती है और पीछे छोड़ जाती है उनके अपनों को रोने- बिलखने के लिए आखिर क्यों ???
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